
नवी मुंबई। अखिल भारतीय अग्निशिखा मंच की ओर से 14 मई को मातृत्व दिवस पर ऑनलाइन कवि सम्मेलन रखा गया। कार्यक्रम का मंच संचालन संस्था की अध्यक्ष अलका पाण्डेय ने किया। वहीं समारोह अध्यक्ष अरविंद अकेला (बिहार), मुख्य अतिथि रामराय (बिहार) और विशिष्ट अतिथि शिपुजन पांडेय, संतोष साहू, पी एल शर्मा (राजस्थान), जनार्दन सिंह (यू पी) रहे। करीब तीस साहित्यकारों ने अपनी उम्दा रचनाओं का पाठ किया तथा सभी रचनाकारों का सम्मान मंच की अध्यक्ष अलका पाण्डेय ने किया। अंत में आभार अश्विन पांडेय ने व्यक्त किया।
अलका पांडे ने कहा कि महिलाएं पूरा जीवन अपने परिवार को देती हैं पर उन्हें उनका अधिकार नहीं मिल पाता।
प्रस्तुत है कवि कवयित्रियों की रचना
ऐसा क्यों है…
मैंने सबको अपना माना।
सब कुछ अपना समर्पित किया।
पर कह दिया मुझको मेरा कुछ भी नहीं।
कहने को तो कहते हैं सब कुछ तुम्हारा है।
हकीकत में कुछ भी अधिकार देते नहीं।
यह घर संसार मेरा है सारे रिश्ते मेरे हैं।
फिर भी मेरा कुछ नहीं। समर्पण मेरा है बलिदान मेरा है।
फिर भी मेरा मुझको मिलता कुछ नहीं।
बोलो ऐसा क्यों ?
बताओ ऐसा क्यों है ? छोटी-छोटी बातों के लिए मैं परेशान होती हूं।
कितनी इच्छाएं मेरी मैं मन में दबाती हूं।
आकांक्षाओं और तमन्नाओं को तिलांजलि दे देती हूं।
रोती हूं मैं रातों के साए में दिन में हंसती हूं।
सब पर मेरा अधिकार है फिर भी मेरा कुछ नहीं।
मेरा अधिकार मुझको कभी मिला नहीं।
बोलो ऐसा क्यों है ? बताओ ऐसा क्यों है ?
हर चीज के लिए मैं तरसती रहती हूं।
हर ख्वाइश के लिए मैं कलपती रहती हूं।
सहज जो सुलभ हो सकता है।
उसके लिए भी तरसाया जाता है।
भीख मांगना मेरी आदत नही है।
फिर भीख मांगना मेरी नियति बन क्यों गई।
मेरा सब पर है अधिकार है। फिर भी मेरा अधिकार क्यों नहीं है।
बताओ ऐसा क्यों है ?
बोलो ऐसा क्यों है ??
बेटी बहन बहु सब कुछ हूं मैं। मैं पत्नी हूं मैं औरत हूं मैं मां हूं।
मेरा भी तो कोई मन है मेरा भी तो स्वाभिमान है।
मेरे अहम पर भी तो चोट लगती है।
मेरा स्वाभिमान दरकता भी है।
मेरे भी तो आंसू निकलते हैं। मन का दहकता अंगार बहता भी है।
मैं कमजोर नहीं हूं, फिर भी कमजोर पड़ जाती हूं।
मैं मजबूर नहीं हूं ,फिर भी मजबूर कर दी जाती हूं।
मैं मां, पत्नी हूं बहन, बेटी हूं।
मैं क्या कुछ नहीं हूं में बहुत कुछ हूं।
प्यार में सब सह कर चुप हो जाती हूं।
खामोश रहना मेरी नीति में क्यों शामिल होता है।
सबको प्यार बंटती हूं। सबको दुलार देती हूं।
मुझको प्यार मिलता नहीं। मुझको मेरा अधिकार कभी मिलता नहीं है।
बोलो ऐसा क्यों है ?
बताओ ऐसा क्यों है ??
अब तो रोना आता है।
दिल टूट टूट जाता है।
दिल रो कर कहता है बस करो बस।
कहीं मैं मर ही ना जाऊं बस।
कहीं में बिखर ही ना जाऊं। जो कुछ मेरे अंदर बचा है। उसको मेरा रहने दो।
मेरा कुछ तो ख्याल करो।
मेरा आधार मुझसे मत छीनो।
मेरा स्वाभिमान मेरे साथ रहने दो।
सब पर मेरा अधिकार है। मेरे कुछ अधिकार मेरे पास रहने दो।
अधिकार कभी लेने से कह देने से होते नहीं है।
अधिकार पाना है तो विश्वास की मजबूत डोर से बांधना होगा।
प्यार इसमें की मजबूत डोर बनाना होगा।
मैं सबके काबिल हूं सारे अधिकार मेरे है। मैं सबकी अधिकारी हूं।
पर तुम मुझको देते क्यों नहीं मेरे अधिकार।
कहते तो तुम रोज हो सब तेरा है सब कुछ तो तुम्हारा है। पर मेरा कुछ नहीं है। लेने देते नही हो।
बोलो ऐसा क्यों है?
बताओ ऐसा क्यों है ??
अकेले तो तुम चल ना पाओगे दो कदम जिंदगी के।
सफर में मेरी जरूरत कदम कदम पर पड़ेगी।
फिर भी तुम मुझको मेरा अधिकार दे नही पाते।
मुझसे सब कुछ छीन कर भी छीन नहीं पाते।
मुझसे सब कुछ पा लिया। मुझको कुछ भी ना दे पाए।
मैं खुश हूं आज बहुत दुखी होकर भी। मैं खुश हूं आज बहुत।
मैं दाता हूं मैं दानी हूं।
तुम तो एक भिखारी हो हाथ फैलाए खड़े हो।
मेरे बिना किसी का कोई अस्तित्व नहीं है।
मैं हूं तो तुम हो मेरे बिना तुम तुम नहीं।
तुम्हारे बिना सब काम होंगे। मेरे बिना तुम कुछ ना कर पाओगे।
यही तो औरतों की खासियत है।
वह मर्दों के काम भी बखूबी कर जाती है।
बड़ी सहजता से निपुणता से कर जाती है।
मैं औरत हूं सब संभाल लूंगी। पर तुम मेरे अधिकार मत देना।
बोलो ऐसा क्यों है?
बताओ ऐसा क्यों है??
- अलका पाण्डेय (मुम्बई)
इंसान रातों-रात अमीर बनना चाहता है बिना मेहनत सब कुछ मिल जाए, ऐसा क्यों है।
- डॉक्टर अंजुल कंसल कनुप्रिया – इंदौर मध्य प्रदेश
विषय है बहुत गहन अक्सर भटकता है मन
प्रश्न हैं इतने उत्तर कहॉं से पाये मन
बचपन में देखा भैया के पैदा होने पर थाली बजी
कहती दादी, पैदा हुई मैं, निराशा की लहर चली
- नीरजा ठाकुर नीर
पलावा, मुंबई (महाराष्ट्र)
ऐसा क्यों है..
रूठते हो आप पल में, और मनाते हमही क्यों
प्रिय बता दो ऐसा क्यों है, ऐसा क्यों है? ऐसा क्यों?
जीवन के सुंदर राहों को कांटों से भर देते हो
जीवन की इस गाड़ी को बे पटरी कर देते हो।
चलते-चलते आगे अचानक , पीछे पलट जाते हो क्यों ?
तुम दीपक मैं बाती हूं, करना दूर अंधेरा है, बस एक भरोसा आपका, और न कोई मेरा है।
प्रेम का दीपक बुझ न पाए, कुछ ऐसा न करते क्यों?
- श्रीराम राय
ऐसा क्यों है?
ऐसा क्यों है,
पथ पर कंकड।
कंक्रीट का जंगल,
मानुष की देन है।
- रामेश्वर प्रसाद गुप्ता
कभी-कभी मैं सोचने पर
मजबूर हो जाती हूं, आखिर ऐसा क्यों होता हूं..?
जिस परिवार रूपी बगिया को
हम सींचते हैं।
- डॉ मीना कुमारी परिहार
ऐसा क्यों है, कैसे होता, कौन यहां करवाये रहा। जान रहे होते सत ज्यादा, असत करें ना डरें जहां। चैन शांति की चाह करें वे, अंधविश्वासों को पनपायें। दिन दूना अरु रात चौगुना, नर नारी यहां अपनाएं।
सत करने वालों को देखें, दुविके फिरते सभी यहां। – डॉ देवीदीन अविनाशी सुमेरपुर हमीरपुर
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