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विज्ञान की ही भांति सनातन धर्म का कोई संस्थापक नहीं – स्वामी गोविंददेव गिरि

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पुणे। हिंदी विवेक प्रकाशित इस ‘सनातन भारत’ ग्रंथ में सनातन परम्परा से सम्बंधित सभी प्रश्नों को समाहित किया गया है। विचार, भाषा और कलेवर की दृष्टि से यह अप्रतिम ग्रंथ है। हर गृहस्थ को उत्तम पुस्तकें अवश्य रखनी चाहिए। सनातन का सीधा अर्थ है, जो कल भी था, आज है औल हमेशा रहेगा। इसका विनाश नहीं हो सकता क्योंकि इसका कोई संस्थापक नहीं हैं। यह सनातन प्रवाह है। जिस प्रकार विज्ञान में तमाम वैज्ञानिक अपने सिद्धांत देते हैं पर उसका कोई संस्थापक नहीं हैं, वही मर्म हिंदू धर्म का है।
उक्त बातें श्रीराम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र न्यास के कोषाध्यक्ष स्वामी गोविंददेव गिरि ने हिंदी विवेक मासिक पत्रिका द्वारा प्रकाशित सनातन भारत ग्रंथ के विमोचन समारोह में कहीं।
अपने आशीर्वचन में स्वामी गोविंददेव गिरि ने आगे कहा कि हमारी संस्कृति में सबके कल्याण कि भावना कार्य करती है। हमारी परम्परा में धर्म की जीवन मूल्यात्मक व्याख्या की गई है। गीता में भी बताए गए 26 लक्षण जीवन मूल्य ही हैं। सर्व धर्म समभाव जैसे अपशब्द को उचारने से पहले भारत की परम्परा का ध्यान करो जो कहती है कि, यह सब कुछ परमात्मा का स्वरूप है। विज्ञान जितना विकास करेगा, सनातन को उतना ही प्रमाणित करता जाएगा। आजादी के पश्चात 70 सालों तक भी हम उनकी शिक्षा व्यवस्था को अपनाए रहे। संसार में सबसे श्रेष्ठ विज्ञान भारत का था। जिस समाज की बुद्धि मार दी जाती है, वह पीछे हो जाता है। राष्ट्र के निर्माण के लिए समाज, जमीन, परम्परा होनी चाहिए। भारत में यह सदा से विद्यमान रहा।
कार्यक्रम में विशेष अतिथि के तौर पर आमंत्रित भाजपा के राष्ट्रीय सचिव सुनील देवधर ने कहा कि सनातन धर्म, मैं नहीं तू, का भाव देता है। हमने विश्व को सब कुछ दिया पर अहंकार नहीं किया। सृष्टि का शोषण नहीं अपितु सृजन किया। सनातन भारत ग्रंथ इस समय की मांग है क्योंकि इंडिया तेजी से भारत की ओर बढ़ रहा है। हम 1947 में स्वाधीन हुए परंतु 2014 में जाकर हम स्वतंत्र हुए। भारत हर क्षेत्र में प्रगति कर रहा है।
विशिष्ट अतिथि और हिंदुस्थान प्रकाशन संस्था के अध्यक्ष पद्मश्री रमेश पतंगे ने बताया कि आम्बेडकर जी ने भारतीय चिंतन को तीन भागों में विभाजित किया था, जिसमें से ब्राह्मण तत्व ज्ञान को समाज को बांटने वाला बताया। प्रजातंत्र के लिए ‘अहं ब्रहमास्मि’ से बड़ा कोई मूल मंत्र नहीं हो सकता। बाबासाहेब का हिंदू कोड बिल पूरी तरह से पास नहीं हो पाया वरना वे आधुनिक मनु बन जाते। उन्होंने वेदों की कहीं आलोचना नहीं की। चातुर्वर्ण्य की कमियां बताई पर उसका निषेध नहीं किया।
पुणे के तिलक रोड स्थित न्यू इंग्लिश स्कूल के गणेश सभागार में आयोजित इस ग्रंथ विमोचन समारोह में रमेश पतंगे और हिंदी विवेक के सीईओ अमोल पेडणेकर ने मुख्य अतिथियों स्वामी गोविंददेव गिरि, सुनील देवधर और रविंद्र वंजारवाडकर का स्वागत किया। अमोल पेडणेकर ने सनातन भारत ग्रंथ के विमोचन कार्यक्रम की प्रस्तावना प्रस्तुत की और हिंदी विवेक के अब तक के प्रवास पर प्रकाश डाला। दोनों अतिथियों ने पिछले व्यावसायिक वर्ष में सभी टार्गेट पूरा करने वाले हिंदी विवेक के प्रतिनिधियों राजीव जहागीरदार, विलास मेस्त्री, हरिभाऊ ताम्हणकर, के. एस. चौबे और विलास आराध्ये का सम्मान कर उनका उत्साहवर्धन किया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में पुणेकर उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन हिंदी विवेक की कार्यकारी सम्पादक पल्लवी अनवेकर ने किया जबकि मार्केटिंग हेड प्रशांत मानकुमरे ने आभार प्रदर्शन किया।

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