Literature

मार्कण्डेय त्रिपाठी की कविता “बधाई”

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बधाई

पहली मयी आ गई ध्यान रक्खें,
महाराष्ट्र दिवस और मजदूर दिवस है ।
बधाई हो दोनों दिवस की सखे प्रिय,
यह मेहनत और उत्साह का शुभ दिवस है ।।

मगर बेरोजगारी और महंगाई ने सच,
उतारा है चेहरा, चतुर्दिक उदासी ।
कठिन है बहुत, आज घर को चलाना,
लगाते व्यथित हो,कृषक आज़ फांसी ।।

नहीं काम मिलता है मज़दूरों को अब,
है हालत बुरी,मंद है सारा धंधा ।
बनाते महल, खुद रहें झोपड़ी में,
शहर हो या गांवों का, है हाल गंदा ।।

है सरकारी सुविधा बहुत आजकल सच,
मगर यह तो आकाशवृत्ति है यारों ।
बहुत लोग बेकार होकर भटकते,
समस्या विकट,इसको यूं ही न टालो ।।

चली योजनाएं अनेकों हैं फिर भी,
होतीं ऊंट के मुंह में वे आज़ जीरा ।
आबादी बहुत और विवश है प्रशासन,
मगर सच में मजदूर होते हैं हीरा ।।

मार्कण्डेय त्रिपाठी ।

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