Literature

अग्निशिखा मंच द्वारा मजदूर विषय पर कवि सम्मेलन संपन्न

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नवी मुंबई। अखिल भारतीय अग्निशिखा मंच एक सामाजिक सांस्कृतिक साहित्यिक मंच है जो विगत 30 वर्षों से सामाजिक और साहित्य कार्यक्रम करता आ रहा है। इसी कड़ी को आगे बढ़ते हुए मजदूर दिवस के उपलक्ष्य में एक ऑनलाइन कवि सम्मेलन रखा गया जिसमें करीब 20 कवियों ने शिरकत की।
इस कवि सम्मेलन की अध्यक्षता डॉ. कुंवर वीर सिंह मार्तंड ने की। वहीं मुख्य अतिथि थे राम राय, विशिष्ट अतिथि जनार्दन सिंह, संतोष साहू, शिवपूजन पांडे पन्नालाल शर्मा थे। मंच संचालन मंच की अध्यक्ष डॉ अलका पांडे ने किया, सरस्वती वंदना रवि शंकर कोलते ने की और आभार प्रदर्शन नीरजा ठाकुर ने किया। कवियों ने अपनी स्वरचित रचनाएं प्रस्तुत की। प्रतिभागी थे रामेश्वर प्रसाद गुप्ता, ओमप्रकाश पांडे, रवि शंकर कोलते, सुरेंद्र हरदे, अलका पांडे, नीरज ठाकुर, रानी अग्रवाल, ब्रिज किशोरी त्रिपाठी, मीना कुमारी परिहार, प्रतिभा द्विवेदी, रागनी मित्तल, चंद्रिका व्यास, अनिता झा, अरविंद कुमार, डॉ महताब अहमद आज़ाद, हीरा लाल आदि।
प्रस्तुत है कविता की कुछ लाइन :-
मजबूर ना हो मजदूर कभी

मजबूर ना हो मजदूर कभी ।
बहाते नित्य है पसीना सभी।।
हर पल मेहनत करतें आए है।
हार जीवन में न मानी कभी।।
सब का महल चौबारा बनाते।
बड़ी बड़ी अट्टालिकाएं गढ़ते।।
नदी नालों का बांध बनाते ।
सब के लिए अन्न ,फल उपजाते।
मजबूर ना हो मजदूर कभी
पर्वत काट पक्की सड़क बनाते ।।
हमारी जरूरत के हर काम को अंजाम देते।
रूखी सूखी खाकर भूख शांत करते।
मजदूरों पर ही सब काम निर्भर है
कोई काम इनके बिना हो सकता नही है।
पर इनकी तकलीफ कोई समझता नहीं।
इनकी जरूरत का कोई ख्याल करता नही है ।।
मजदूरों का भी आत्मसम्मान होता है ।
प्यार स्नेह की जरूरत उन्हें भी है ।।
पूरा हक उन्हें उनका मिल जाए तो।
आखों में आंसू ना होगे मजदूर, मजबूर ना होगा ।।

  • अलका पाण्डेय, मुम्बई

बाल मज़दूर
भूख का वज़न तो भारी होता है
इन नन्हें हाँथों में ईंट का वजन भी भारी हैं!
इन नन्हें हाँथों का कमाल तो देखिए ! जनाब
चाय की प्याली में तूफ़ान ला
आम से ख़ास और प्रधान हो जाते हैं जनाब !
अनिता शरद झा

शीर्षक – ऐसा भी होता है
कोई कुबेर बांधे है मुट्ठी में, कोई कौडी़-कौड़ी रोता है।
ऐसा भी होता है।

  • रागिनी मित्तल, कटनी, म.प्र.

आज के इस महंगाई के दौर में।
हर एक गरीब की जिंदगी बेहाल है ।।
दर-दर भटकता है रोजगार की खातिर।
गर काम न मिले जीना मुहाल है।।

  • डॉ महताब अहमद आज़ाद, उत्तर प्रदेश

श्रम ही है श्री राम हमारा।
पूजा ही है काम हमारा ।।
धर्म हमारा है सेवा भक्ति ।
है मुक्ति का संगम हमारा ।।

  • प्रो रविशंकर कोलते, नागपुर

मजदूर दिवस
एक मई है मजदूरों के नाम, दिवस महान,
मजदूर दिवस के रूप में मनाता
सारा जहान।
अपनी खुशी से कोई न बनना
चाहे मजदूर,
पेट पालने को करे मजदूरी,
होकर मजबूर।

  • रानी

मजदूर
मैं मजदूर हूं, मजदूर हूं
इसलिए मजदूरी करनी पड़ती है
पढा लिखा होने पर भी
पेट के लिए मजदूरी करनी पड़ती है।

  • सुरेंद्र

मजदूर
जी हाॅं मैं मजदूर हूॅं
एक दिन दिहाड़ी ना मिलने पर
परिवार सहित भूखा सो जाता हूॅं
मैं जानता हूॅं, मैं देश का पहिया हूॅं
देश की गाड़ी मैं ही तो चलाता हूॅं।

  • नीरजा ठाकुर नीर
    पलावा, मुंबई महाराष्ट्र

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